I’m not a big fan of Javed Akhtar’s poetry, but this is one of his best Nazms. Decade long wandering in the Mountains and staying here for last 5 months, I have come to relate quite closely to it as I approach the end of my stay.
घुल रहा है सारा मंज़र शाम धुंधली हो गयी
चांदनी की चादर ओढ़े हर पहाड़ी सो गयी
वादियों में पेड़ हैं अब नीलगूं परछाइयां
उठ रहा है कोहरा जैसे चांदनी का हो धुंआ
चाँद पिघला तो चट्टानें भी मुलायम हो गयीं
रात की साँसें जो महकी और मद्धम हो गयीं
नर्म है जितनी हवा उतनी फिज़ा खामोश है
टहनियों पर ओस पी के हर कली बेहोश है
मोड़ पर करवट लिए अब ऊंघते हैं रास्ते
दूर कोई गा रहा है जाने किसके वास्ते
ये सुकूं में खोयी वादी नूर की जागीर है
दूधिया परदे के पीछे सुरमई तस्वीर है
धुल गयी है रूह लेकिन दिल को ये एहसास है
ये सुकूं बस चाँद लम्हों को ही मेरे पास है
फासलों की गर्द में ये सादगी खो जाएगी
शहर जाके ज़िन्दगी फिर शहर की हो जाएगी
-जावेद अख्तर
G! that’s way the life goes on. Only that nature’s beauty gives us inside deep happiness which becomes our life time treasure and we can overcome from our deep sorrow.Life is about to appreciate what ever you see and get..Extremely special picture of rain drop……om
Very nice poem